डा. अहमद अली वर्की आज़मी की एक ग़ज़ल: نئے سال کی نئی غزل





डा. अहमद अली वर्की आज़मी की एक ग़ज़ल:






गज़ल:

नया साल है और नई यह ग़ज़ल
सभी का हो उज्जवल यह आज और कल

ग़ज़ल का है इस दौर मेँ यह मेज़ाज
है हालात पर तबसेरा बर महल

बहुत तल्ख़ है गर्दिशे रोज़गार
न फिर जाए उम्मीद पर मेरी जल

मेरी दोस्ती का जो भरते हैँ दम
छुपाए हैँ ख़ंजर वह ज़ेरे बग़ल

न हो ग़म तो क्या फिर ख़ुशी का मज़ा
मुसीबत से इंसाँ को मिलता है बल

वह आएगा उसका हूँ मैं मुंतज़िर
न जाए खुशी से मेरा दम निकल

है बेकैफ हर चीज़ उसके बग़ैर
नहीँ चैन मिलता मुझे एक पल

न समझेँ अगर ग़म को ग़म हम सभी
तो हो जाएँगी मुशकिले सारी हल

सभी को है मेरी यह शुभकामना
नया साल सबके लिए हो सफल

ख़ुदा से है बर्की मेरी यह दुआ
ज़माने से हो दूर जंगो जदल

मुतकारिब की मुजाहिफ़ शक्ल
122 122 122 12

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