ग़ज़ल अहमद अली बर्क़ी आज़मी:जाने तू किस हाल मेँ होगा सोच के दिल धबराता है
ग़ज़ल
अहमद अली बर्क़ी आज़मी
अहमद अली बर्क़ी आज़मी
तुझ से बिछड जाने का तसव्वुर ज़ेह्न मेँ जब भी आता है
सात समुंदर पार का सपना सपना ही रह जाता है
सात समुंदर पार का सपना सपना ही रह जाता है
शब-ए-जुदाई हिज्र मेँ तेरे कैसे गुज़रती है हमदम
दिल में ख़लिश सी उठती है और सोज़-ए-दुरूँ बढ जाता है
दिल में ख़लिश सी उठती है और सोज़-ए-दुरूँ बढ जाता है
एक अनजाना ख़ौफ सा तारी हो जाता है शब-ए-फ़ेराक़
जाने तू किस हाल मेँ होगा सोच के दिल धबराता है
जाने तू किस हाल मेँ होगा सोच के दिल धबराता है
कैफो सुरूरो मस्ती से सरशार है मेरा ख़ान-ए-दिल
मेरी समझ मेँ कुछ नहीँ आता तुझसे कैसा नाता है
मेरी समझ मेँ कुछ नहीँ आता तुझसे कैसा नाता है
है तेरी तसवीर-ए-तसव्वुर कितनी हसीँ हमदम मत पूछ
आजा मुजस्सम सामने मेरे क्यूँ मुझको तरसाता है
आजा मुजस्सम सामने मेरे क्यूँ मुझको तरसाता है
क़सर-ए-दिल वीरान है मेरा जान-ए-तमन्ना तेरे बग़ैर
कब होगा आबाद दोबारा बता सहा नहीँ जाता है
कब होगा आबाद दोबारा बता सहा नहीँ जाता है
तेरे दिल मेँ मेरे लिए है कोई न कोई गोशा-ए-नर्म
यही वजह है देख के मुझको तू अकसर शरमाता है
यही वजह है देख के मुझको तू अकसर शरमाता है
इसकी ग़ज़लोँ मेँ होता है एक तसलसुल इसी लिए
रंग-ए-तग़ज़्ज़ुल अहमद अली बर्क़ी का सब को भाता है
रंग-ए-तग़ज़्ज़ुल अहमद अली बर्क़ी का सब को भाता है