माँ की ममता का नहीँ कोई शुमार


माँ की ममता का नहीँ कोई शुमार
डा. अहमद अली बर्क़ी आज़मी
माँ की ममता का नहीँ कोई शुमार
माँ है सन्ना-ए-अज़ल का शाहकार
माँ से है गुलज़ार-ए-हस्ती मेँ बहार
माँ है ऐसा गुल नहीँ है जिसमेँ ख़ार
माँ का कोई भी नहीँ नेअमल बदल
यह हक़ीक़त है सभी पर आशकार
माँ है वह गहवारा-ए-अमनो सुकूँ
जिस से है माहौल घर का साज़गार
माँ का है मरहून-ए-मिन्नत यह वजूद
है मताए ज़िंदगी माँ पर निसार
माँ नहीँ होती अगर होता कहाँ
आज जो हासिल है यह इज़ज़ो वक़ार
माँ की शफक़त हैँ जहाँ मे बेमिसाल
माँ है घर मेँ एक नख़ल-ए-सायादार
हकके मादर हो नहीँ सकता अदा
माँ है बर्क़ी रहमत-ए-परवरदिगार

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