خزاں چلی گئی فصلِ بہار ہے آجا : احمد علی برقی اعظمیख़िज़ाँ चली गई फसल ए बहार है आ जा अहमद अली बर्क़ी आज़मी
ख़िज़ाँ चली गई फसल ए बहार है आ जा
अहमद अली बर्क़ी आज़मी
ख़िज़ाँ चली गई फसल ए बहार है आ जा
हर एक सांस रगे जॉन
पे बार है आ जा
नहीं है तेरे सिवा
मेरा मुद्दआ कुछ भी
मता ए शौक़ यह तुझ
पर निसार है आ जा
निशात ए रूह है तेरा
नियाज़ ो नाज़ मुझे
हर एक ऐडा से तेरी
मुझको प्यार है आ जा
सुकून ए क़ल्ब मुयस्सर
नहीं है तेरे बग़ैर
तेरे फ़िराक़ में दिल
बेकरार है आ जा
तुझे अज़ीज़ है जो कुछ
यहाँ मुयस्सर है
फ़िज़ा ए सहन ए चमन
खुशगवार है आ जा
है सब्र आज़मा तेरा
यह वादा ए फ़र्दा
दिल ए हज़ीं को तेरा
इंतज़ार है आ जा
नहीं करेगा गिले शिकवे
तुझ से कुछ बर्क़ी
अगर ज़रा भी तुझे एतेबार
है आ जा