जगदीश रावतानी - ९वि आनंदम काव्य घोष्टि-Ahmad Ali Barqi Azmi With Jagdish Rawtani Reciting Ghazal






आनंदम काव्य गोष्टी १२ तारीख को जगदीश रावतानी के निवास स्थान पर संपन हुई । इसमे शरीक कविगणों के नाम है : अनुराधा शर्मा , संजीव कुमार , सक्षर्था भसीन , मुनवर सरहदी, दरवेश भरती, मनमोहन तालिब, ज़र्फ़ देहलवी, डॉ विजय कुमार, शिलेंदर सक्सेना , प्रेम सहजवाला शहदत्त अली निजामी, दर्द देहलवी, मजाज़ साहिब, नूर्लें कौसर कासमी , रमेश सिद्धार्थ , अख्तर आज़मी, अहमद अली बर्की, दिक्सित बकौरी, डॉ शिव कुमार, अनिल मीत , इंकलाबी जी और जगदीश रावतानी। घोषति की अध्येक्ष्ता दरवेश भरती जी ने की । सचालन जगदीश रावतानी ने किया।




एक सार्थक बहस भी की गयी जिसका विषय था "साहित्य की दशा और दिशा " जिसमे डॉ रमेश सिद्धार्थ , डॉ विजय कुमार, कुमारी अनुराधा शर्मा और डॉ दरवेश भारती ने अपने विचार रखे।




काव्य घोश्ती की शुरुआत से पहले ये दुखद सुचना दी गयी के जाने माने साहित्येकर विष्णु प्रभाकर जी का देहांत हो गया है । एक और दुखद समाचार यह था के श्री बलदेव वंशी जी के जवान पुत्र का भी हाल ही मैं देहांत हो गया .
दो मिनट का मौन धारण कर के उनकी आत्माओं की शान्ति और परिवार के सद्सियो को सदमा बर्दाशत करने की हिमत के लिए प्रार्थना की गयी ।




काव्य घोस्टी मैं पढ़े गए कुछ कवियों के कुछ शेर/ पंक्तिया प्रस्तुत है ।








डॉ अहमद अली बर्की :




वह मैं हु जिसने की उसकी हमेशा नाज़बर्दारी
मगर मैं जब रूठा मानाने तक नही पंहुचा
लगा दी जिसकी खातिर मैंने अपनी जान की बाज़ी
वह मेरी कबर पर आंसू बहाने तक नही पंहुचा
अख्तर आज़मी :
ख़ुद गरज दुनिया है इसमे बाहुनर हो जाइए
आप अपने आप से ख़ुद बाखबर हो जाइये
जिसका साया दूसरो के द्वार के आंगन को मिले
ज़िन्दगी की धुप मैं ऐसा शजर हो जाइये
डॉ विजय कुमार
प्यासी थी ये nazaraN tera दीदार हो गया
नज़रो मैं बस गया तू और तुझसे प्यार हो गया
डॉ दरवेश भारती :
इतनी कड़वी ज़बान न रखो
डोर रिश्तो की टूट जायेगी






जगदीश रावतानी :




जहा जहा मैं गया इक जहा नज़र आया
हरेक शे मैं मुझे इक गुमा नज़र आया
जब आशियाना मेरा खाक हो गया जलकर
पड़ोसियों को मरे तब धुँआ नज़र आया


मुनवर सरहदी :
ज़िन्दगी गुज़री है यु तो अपनी फर्जानो के साथ
रूह को राहत मगर मिलती है दीवानों के साथ ]


घोश्ती का समापन दरवेश भरती जी के व्याख्यान और उनकी एक रचना के साथ हुआ । जगदीश रावतानी ने सबका धन्यवाद किया .







आनंदम काव्य गोष्टी १२ तारीख को जगदीश रावतानी के निवास स्थान पर संपन हुई । इसमे शरीक कविगणों के नाम है : अनुराधा शर्मा , संजीव कुमार , सक्षर्था भसीन , मुनवर सरहदी, दरवेश भरती, मनमोहन तालिब, ज़र्फ़ देहलवी, डॉ विजय कुमार, शिलेंदर सक्सेना , प्रेम सहजवाला शहदत्त अली निजामी, दर्द देहलवी, मजाज़ साहिब, नूर्लें कौसर कासमी , रमेश सिद्धार्थ , अख्तर आज़मी, अहमद अली बर्की, दिक्सित बकौरी, डॉ शिव कुमार, अनिल मीत , इंकलाबी जी और जगदीश रावतानी। घोषति की अध्येक्ष्ता दरवेश भरती जी ने की । सचालन जगदीश रावतानी ने किया।


एक सार्थक बहस भी की गयी जिसका विषय था "साहित्य की दशा और दिशा " जिसमे डॉ रमेश सिद्धार्थ , डॉ विजय कुमार, कुमारी अनुराधा शर्मा और डॉ दरवेश भारती ने अपने विचार रखे।


काव्य घोश्ती की शुरुआत से पहले ये दुखद सुचना दी गयी के जाने माने साहित्येकर विष्णु प्रभाकर जी का देहांत हो गया है । एक और दुखद समाचार यह था के श्री बलदेव वंशी जी के जवान पुत्र का भी हाल ही मैं देहांत हो गया .
दो मिनट का मौन धारण कर के उनकी आत्माओं की शान्ति और परिवार के सद्सियो को सदमा बर्दाशत करने की हिमत के लिए प्रार्थना की गयी ।


काव्य घोस्टी मैं पढ़े गए कुछ कवियों के कुछ शेर/ पंक्तिया प्रस्तुत है ।




डॉ अहमद अली बर्की :


वह मैं हु जिसने की उसकी हमेशा नाज़बर्दारी
मगर मैं जब रूठा मानाने तक नही पंहुचा
लगा दी जिसकी खातिर मैंने अपनी जान की बाज़ी
वह मेरी कबर पर आंसू बहाने तक नही पंहुचा
अख्तर आज़मी :
ख़ुद गरज दुनिया है इसमे बाहुनर हो जाइए
आप अपने आप से ख़ुद बाखबर हो जाइये
जिसका साया दूसरो के द्वार के आंगन को मिले
ज़िन्दगी की धुप मैं ऐसा शजर हो जाइये
डॉ विजय कुमार
प्यासी थी ये nazaraN tera दीदार हो गया
नज़रो मैं बस गया तू और तुझसे प्यार हो गया
डॉ दरवेश भारती :
इतनी कड़वी ज़बान न रखो
डोर रिश्तो की टूट जायेगी


जगदीश रावतानी :


जहा जहा मैं गया इक जहा नज़र आया
हरेक शे मैं मुझे इक गुमा नज़र आया
जब आशियाना मेरा खाक हो गया जलकर
पड़ोसियों को मरे तब धुँआ नज़र आया

मुनवर सरहदी :
ज़िन्दगी गुज़री है यु तो अपनी फर्जानो के साथ
रूह को राहत मगर मिलती है दीवानों के साथ ]

घोश्ती का समापन दरवेश भरती जी के व्याख्यान और उनकी एक रचना के साथ हुआ । जगदीश रावतानी ने सबका धन्यवाद किया .

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