आज की ग़ज़ल . डा.अहमद अली वर्की की ग़ज़लें और परिचय


आज की ग़ज़ल .
समकालीन ग़ज़ल को समर्पित मंच
FRIDAY, JULY 18, 2008
डा.अहमद अली वर्की की ग़ज़लें और परिचय











25 दिसंबर 1954 को जन्मे डा. अहमद अली 'बर्क़ी' साहब तबीयत से शायर हैं.

शायर का परिचय ख़ुद बक़ौल शायर :

मेरा तआरुफ़

शहरे आज़मगढ है बर्क़ी मेरा आबाई वतन
जिसकी अज़मत के निशां हैं हर तरफ जलवा फेगन

मेरे वालिद थे वहां पर मर्जए अहले नज़र
जिनके फ़िक्रो— फ़न का मजमूआ है तनवीरे सुख़न

नाम था रहमत इलाही और तख़ल्लुस बर्क़ था
ज़ौफ़ेगन थी जिनके दम से महफ़िले शेरो सुख़न

आज मैं जो कुछ हूँ वह है उनका फ़ैज़ाने नज़र
उन विरसे में मिला मुझको शऊरे —फिकरो —फ़न

राजधानी देहली में हूँ एक अर्से से मुक़ीम
कर रहा हूँ मैं यहां पर ख़िदमते अहले वतन

रेडियो के फ़ारसी एकाँश से हूँ मुंसलिक
मेरा असरी आगही बर्क़ी है मौज़ूए सुख़न .


डा. अहमद अली बर्की़ आज़मी साहब की तीन ग़ज़लें

१.









सता लें हमको, दिलचस्पी जो है उनकी सताने में
हमारा क्या वो हो जाएंगे रुस्वा ख़ुद ज़माने में

लड़ाएगी मेरी तदबीर अब तक़दीर से पंजा
नतीजा चाहे जो कुछ हो मुक़द्दर आज़माने में

जिसे भी देखिए है गर्दिशे हालात से नाला
सुकूने दिल नहीं हासिल किसी को इस ज़माने में

वो गुलचीं हो कि बिजली सबकी आखों में खटकते हैं
यही दो चार तिनके जो हैं मेरे आशियाने में

है कुछ लोगों की ख़सलत नौए इंसां की दिल आज़ारी
मज़ा मिलता है उनको दूसरों का दिल दुखाने में

अजब दस्तूर—ए—दुनिया— ए —मोहब्बत है , अरे तौबा
कोई रोने में है मश़ग़ूल कोई मुस्कुराने में

पतंगों को जला कर शमए—महफिल सबको ऐ 'बर्क़ी'!
दिखाने के लिए मसरूफ़ है आँसू बहाने में.


बहर—ए—हज़ज=1222,1222,1222,1222

२.









नहीं है उसको मेरे रंजो ग़म का अंदाज़ा
बिखर न जाए मेरी ज़िंदगी का शीराज़ा

अमीरे शहर बनाया था जिस सितमगर को
उसी ने बंद किया मेरे घर का दरवाज़ा

सितम शआरी में उसका नहीं कोई हमसर
सितम शआरों में वह है बुलंद आवाज़ा

गुज़र रही है जो मुझपर किसी को क्या मालूम
जो ज़ख़्म उसने दिए थे हैं आज तक ताज़ा

गुरेज़ करते हैं सब उसकी मेज़बानी से
भुगत रहा है वो अपने किए का ख़मियाज़ा

है तंग का़फिया इस बहर में ग़ज़ल के लिए
दिखाता वरना में ज़ोरे क़लम का अंदाज़ा

वो सुर्ख़रू नज़र आता है इस लिए 'बर्क़ी'!
है उसके चेहरे का, ख़ूने जिगर मेरा, ग़ाज़ा

बह्र—ए—मजत्तस= 1212,1122,1212,112
**
अमीरे शहर=हाकिम; सितम शआरी-=ज़ुल्म; हमसर= बराबर का

सितम शआर=ज़लिम, ग़ाज़ा=क्रीम, बुलंद आवाज़ा-=मशहूर


३.









दर्द—ए—दिल अपनी जगह दर्द—ए—जिगर अपनी जगह
अश्कबारी कर रही है चश्मे—ए—तर अपनी जगह

साकित—ओ—सामित हैं दोनों मेरी हालत देखकर
आइना अपनी जगह आइनागर अपनी जगह

बाग़ में कैसे गुज़ारें पुर—मसर्रत ज़िन्दगी
बाग़बाँ का खौफ़ और गुलचीं का डर अपनी जगह

मेरी कश्ती की रवानी देखकर तूफ़ान में
पड़ गए हैं सख़्त चक्कर में भँवर अपनी जगह

है अयाँ आशार से मेरे मेरा सोज़—ए—दुरून
मेरी आहे आतशीं है बेअसर अपनी जगह

हाल—ए—दिल किसको सुनायें कोई सुनता ही नहीं
अपनी धुन में है मगन वो चारागर अपनी जगह

अश्कबारी काम आई कुछ न 'बर्क़ी'! हिज्र में
सौ सिफ़र जोड़े नतीजा था सिफ़र अपनी जगह

बहरे रमल(२१२२ २१२२ २१२२ २१२ )

संपर्क:

aabarqi@gmail.com

DR.AHMAD ALI BARQI AZMI

598/9, Zakir Nagar, Jamia Nagar

New Delhi-11025
अब तक प्रकाशित शायरों की सूची.
Aaj kee GHazal
• डा.अहमद अली वर्की की ग़ज़लें और परिचय
7/19/2008
25 दिसंबर 1954 को जन्मे डा. अहमद अली 'बर्क़ी'…
• देवमणि पांडेय की ग़ज़लें और परिचय
7/8/2008
परिचय: 4 जून 1958 को सुलतानपुर (उ.प्र.) में जन्मे…
• प्राण शर्मा की दो ग़ज़लें.
7/1/2008
परिचय:13 जून 1937 को वज़ीराबाद (अब पकिस्तान में) जन्मे…
• कृश्न कुमार 'तूर' जी की ग़ज़लें
6/23/2008
परिचय: 11 अक्तूबर 1933 को जन्मे जनाब—ए—कृश्न कुमार 'तूर'…
• श्री सरवर आलम राज़ 'सरवर'
6/12/2008
'सरवर' 16 मार्च 1935 को मध्य प्रदेश में जन्मे…
• श्री सुरेश चन्द्र 'शौक़' जी की ग़ज़लें
6/5/2008
परिचय 5 अप्रैल, 1938 को ज्वालामुखी (हिमाचल प्रदेश) में…
• ज़हीर कुरैशी जी की ग़ज़लें..
5/27/2008
परिचय: जन्म तिथि: 5 अगस्त,1950 जन्मस्थान: चंदेरी (ज़िला:गुना,म.प्र.) प्रकाशित…
• श्री बृज कुमार अग्रवाल जी की ग़ज़ल व परिचय
5/14/2008
परिचय 46 वर्षीय श्री बृज कुमार अग्रवाल (आई. ए. एस.)…
• पवनेन्द्र ‘ पवन ’ की दो ग़ज़लें और परिचय
5/5/2008
परिचय नाम: पवनेन्द्र ‘पवन’ जन्म तिथि: 7 मई 1945.…
• अमित "रंजन गोरखपुरी" की ग़ज़ल व परिचय
4/21/2008
परिचय: उपनाम- रंजन गोरखपुरी वस्तविक नाम- अमित रंजन चित्रांशी…
• दीपक गुप्ता जी का परिचय और ग़ज़ल
4/10/2008
उम्र: 36 साल शिक्षा: बी.ए.(1994) निवास: फ़रीदाबाद (हरियाणा) पहली…
• देवी नांगरानी जी की एक ग़ज़ल और परिचय
4/9/2008
परिचयजन्म- 11 मई 1949 को कराची में शिक्षा- बी.ए.…
• कवि कुलवंत जी की एक ग़ज़ल
3/31/2008
नाम : कवि कुलवंत सिंह जन्म: 1967 उतरांचल(रुड़की) शिक्षा:…
• डा. प्रेम भारद्वाज जी की तीन ग़ज़लें
3/28/2008
डा. प्रेम भारद्वाज जन्म: 25 दिसम्बर ,1946. नगरोटा बगवाँ…
• द्विज जी की पांच ग़ज़लें
3/17/2008
पाँच ग़ज़लें 1.यह ग़ज़ल रमल की एक सूरत.फ़ायलातुन, फ़ायलातुन,फ़ा…
• मेरे गुरु जी का परिचय और उनकी ग़ज़लें
3/15/2008
नाम: द्विजेन्द्र ‘द्विज’ पिता का नाम: स्व. मनोहर शर्मा‘साग़र’…

نذ ر کلام سرور : ڈاکٹر احمد علی برقی اعظمیNAZAR E KALAM E SARWAR





Kaif O Masti Se Hai Sarshar Kalam e Sarwar
Dad O Tasin ka Hai Haqdar Kalam e Sarwar

Rang O Aahang Naya Tarz e Bayan Hai Dilkash
Fikr Aur Fan Ka Hai Shahkar Kalam e Sarwar

Ahmad Ali Barqi Azmi
Zakir Nagar,Jamia Nagar
New Delhi-110025

Ghazal For Mushaira "BARKHA BAHAAR" By Dr.Ahmad Ali Barqi Azmi

Khil utha dil misl e ghunchah aate hi fasl e bahaar
Aaise mein sabar aazma hai mujhko tera intezaar

Aa gaya hai barishon mein bheeg kar tujh par nikhaar
Hai nehaayat rooh parwar teri zulf e mushkbaar

Jalwah gaah e husn e fitrat hai yeh dilkash sabzah zaar
Sab se badh kar meri nazron mein hai lekin husn e yaar

Zindagi bekaif hai mere liye tere baghair
gulshan e hasti mein mere tere dam se hai bahaar

Hai judaai ka tasavvur aise mein sohaan e rooh
aa bhi ja jaan e Ghazal mausam hai behad khushgawaar

Ghunchah o gul hans rahe hain ro raha hai dil mera
Imtehaan leti hai mera gardish e lail o nahaar

Saaz e fitrat par ghazalkhwan hai bahaar e jaan fiza
Kaif o sarmasti se hain sarshaar BARQI barg o baar

Dr.Ahmad Ali Barqi Azmi

नज़रे अक़ीदत बहुज़ूरे मोहतरम सरवर आलम राज़ सरवर

नज़रे अक़ीदत बहुज़ूरे मोहतरम सरवर आलम राज़ सरवर
डा. अहमद अली बर्क़ी आज़मी
है मोरस्सा सरवर आलम राज़ सरवर का कलाम
करते हैँ अहले नज़र उनका नेहायत एहतेराम
कैफो सरमस्ती ,तग़ज्ज़ुल और हुस्ने फिक्रो फन
शायरी है उनकी गोया बादह ए इशरत का जाम
उनकी हर तस्नीफ है आईनाए नक़दो नज़र
अहदे नौ मेँ वक़्त की आवाज़ है उनका कलाम
उर्दू वेबसाइट है उनकी मर्जए अहले नज़र
इस्तेफ़ादह कर रहे हैँ जिस से यकसाँ ख़ासो आम
हैँ वह बेशक इफ़तेख़ारे सरज़मीने चाँद पूर
कर रहे हैँ जिस्का रोशन अब वह अमरीका मेँ नाम
उनकी अमली ज़िंदगी है मज़हरे हुस्ने अमल
उनके इल्मी कारनामे हैँ सभी नक़शे दवाम
उनकी तख़लीक़ात हँ उर्दू अदब का शाहकार
उनका अरबाबे नज़र मेँ है बहुत आला मोक़ाम
काम से हैँ अपने वह अहले नज़र मेँ सुर्ख़रू
है नहायत मोतबर उर्दू अदब मेँ उनका नाम
उनके गुलहाए मज़ामीँ से मुअत्तर है फ़ज़ा
इम्बेसातो कैफ से सरशार है उनका कलाम
मौजज़न हर शेर मेँ है सोज़ो साज़े ज़िंदगी
है सुरूदे सरमदी अहमद अली उनका कलाम

نذر عقید ت بحضور محترم سرور عالم راز سرور


मुशायरा/कवि-सम्मेलन “बरखा-बहार” भाग 2

महावीर
July 22, 2008
मुशायरा/कवि-सम्मेलन “बरखा-बहार” भाग 2
Filed under: प्राण शर्मा, महावीर शर्मा, सामान्य/General — महावीर @ 12:02 am
मुशायरा/कवि-सम्मेलन “बरखा-बहार” भाग 2

आदरणीय प्रधान जी, कवियों, कवियत्रियों और श्रोतागण को आपके सेवक (महावीर शर्मा) और श्री प्राण शर्माजी का नमस्कार।
‘बरखा-बहार’ पर १५ जुलाई २००८ के मुशायरे का अभी भी ख़ुमार बाक़ी है। आज जो गुणवान कवि और कवियत्रियां अपना अमूल्य समय देकर रचनाओं से इस कवि-सम्मेलन की शोभा बढ़ा रहे हैं, उन्हें मैं विनम्रतापूर्वक प्रणाम करता हूं। आप सभी श्रोताओं का हार्दिक स्वागत है।
श्री महावीर जी का मैं बहुत आभारी हूं जिन्हों ने कवि सम्मेलन में शामिल कर, अहमद अली ‘बर्क़ी’ आज़मी, देवमणि पांडेय, द्विजेन्द्र ‘द्विज’, समीर लाल ‘समीर’, पारुल, रज़िया अकबर मिर्ज़ा, डॉ. मुंजु लता, नीरज गोस्वामी, राकेश खंडेलवाल, नीरज त्रिपाठी, रंजना भाटिया ‘रंजू’, सतपाल ‘ख़्याल’ जैसे गुणी कवियों और कवियत्रियों के साथ पढ़ने का सुनहरा मौक़ा दिया है।

यहां यह कहना उचित होगा कि यह कवि-सम्मेलन हमारे यू.के. के प्रितिष्ठित कवि, लेखक, समीक्षक और ग़ज़लकार श्री प्राण शर्मा जी की ही प्रेरणा और सुझाव से आयोजित किया किया गया है जिनका मार्गदर्शन पग-पग पर मिलता रहा है। आप ग़ज़ल की दुनिया में एक जाने माने उस्ताद हैं।


(वाह! वाह! के साथ तालियों से हॉल गूंज उठा है।)
***
आज हमें बेहद खुशी है कि हमारे दरमियान जनाब डॉ. अहमद अली बर्क़ी आज़मी साहेब मौजूद हैं। आपको शायरी का फ़न विरसे में मिला है। आप मशहूर शायर जनाब बर्क़ साहेब के बेटे हैं जो जनाब नूह नारवी के शागिर्द थे। जनाब नूह नारवी साहेब दाग़ देहलवी के शागिर्द थे।
डॉ. बर्क़ी साहेब ने फ़ारसी में पी.एच.डी. हासिल की है और आजकल ऑल इंडिया रेडियो में ऐक्स्टर्नल सर्विसिज़ डिवीज़न के पर्शियन (फ़ारसी) सर्विस में ट्रांस्लेटर/अनाउंसर/ब्रॉडकास्टर की हैसियत से काम कर रहे हैं। आप का तआरुफ़ आज की ग़ज़ल
में देखा जा सकता है।
मैं जनाब डॉ. अहमद अली ‘बर्क़ी’ साहेब से दरख़्वास्त करता हूं कि माइक पर आकर अपने कलाम से इस मुशायरे की शान बढ़ाएं :
जनाब अहमद अली ‘बर्क़ी’:

खिल उठा दिल मिसले ग़ुंचा आते ही बरखा बहार
ऐसे मेँ सब्र आज़मा है मुझको तेरा इंतेज़ार
आ गया है बारिशोँ मेँ भीग कर तुझ पर निखार
है नेहायत रूह परवर तेरी ज़ुल्फ़े मुश्कबार
जलवागाहे हुस्ने फितरत है यह दिलकश सबज़ाज़ार
सब से बढकर मेरी नज़रोँ मे है लेकिन हुस्ने यार
ज़िंदगी बे कैफ है मेरे लिए तेरे बग़ैर
गुलशने हस्ती मेँ मेरे तेरे दम से है बहार
है जुदाई का तसव्वुर ऐसे मेँ सोहाने रूह
आ भी जा जाने ग़ज़ल मौसम है बेहद साज़गार
ग़ुचा वो गुल हंस रहे हैँ रो रहा है दिल मेरा
इमतेहाँ लेती है मेरा गर्दिशे लैलो नहार
साज़े फ़ितरत पर ग़ज़लख़्वाँ है बहारे जाँफेज़ा
क़ैफ़—ओ— सरमस्ती से हैँ सरशार बर्क़ी बर्गो बार
(श्रोतागण खड़े होकर तालियों से ‘बर्क़ी’ साहेब के धन्यवाद और दाद का इज़हार कर रहे हैं।)
जनाब डॉ. बर्क़ी साहेब आपकी शिरकत के लिए हम सभी तहे दिल से ममनून और शुक्रगुज़ार हैं। उम्मीद है कि आगे होने वाले मुशायरों में भी आपकी राहनुमाई मिलती रहेगी।
***
“छ्म छम छम दहलीज़ पे आई मौसम की पहली बारिश
गूंज उठी जैसे शहनाई मौसम की पहली बारिश”

ABOUT ME- DR> AHMAD ALI BARQI AZMI


M.A.(Urdu,Persian),B.Ed
PH.D.(Persian)On "Socio-Political Trends in Persian Poetry Of The Constitutional Period of Iran(1906-1925)"Under The Guidance of Prof.A.W.Azhar Dehlavi of JNU,New Delhi
Composing Topical Urdu Poetry On Current National And International Events and International Days keeping in view the needs of the hour aims at creating awareness among the masses about recent strides in Science and Information Technology and danger of the increasing pollution &Global Warming to the mankind.

ABOUT ME: Dr.AHMAD ALI BARQI AZMI

M.A.(Urdu,Persian),B.Ed
PH.D.(Persian)On "Socio-Political Trends in Persian Poetry Of The Constitutional Period of Iran(1906-1925)"Under The Guidance of Prof.A.W.Azhar Dehlavi of JNU,New Delhi
Composing Topical Urdu Poetry On Current National And International Events and International Days keeping in view the needs of the hour aims at creating awareness among the masses about recent strides in Science and Information Technology and danger of the increasing pollution &Global Warming to the mankind.

GHAZAL

ग़ज़ल
डा. अहमद अली बर्क़ी आज़मी

ख़िल उठा दिल मिसले ग़ुंचा आते ही बरखा बहार
ऐसे मेँ सब्र आज़मा है मुझको तेरा इंतेज़ार
आ गया है बारिशोँ मेँ भीग कर तुझ पर निखार
है नेहायत रूह परवर तेरी ज़ुल्फ़े मुश्कबार
जलवागाहे हुस्ने फितरत है यह दिलकश सबज़ाज़ार
सब से बढकर मेरी नज़रोँ मे है लेकिन हुस्ने यार
ज़िंदगी बे कैफ है मेरे लिए तेरे बग़ैर
गुलशने हस्ती मेँ मेरे तेरे दम से है बहार
है जुदाई का तसव्वुर ऐसे मेँ सोहाने रूह
आ भी जा जाने ग़ज़ल मौसम है बेहद साज़गार
ग़ुचा वो गुल हंस रहे हैँ रो रहा है दिल मेरा
इमतेहाँ लेती है मेरा गर्दिशे लैलो नहार
साज़े फ़ितरत पर ग़ज़लखवाँ है बहारे जाँफेज़ा
कैफो सरमस्ती से हैँ सरशार बर्क़ी बर्गो बार

GHAZAL BY DR.AHMAD ALI BARQI AZMI

मेरा तआरुफ

मेरा तआरुफ
शहरे आज़मगढ है बर्क़ी मेरा आबाई वतन
जिसकी अज़मत के निशाँ हैँ हर तरफ जलवा फेगन
मेरे वालिद थे वहाँ पर मर्जए अहले नज़र
जिनके फिकरो फ़न का मजमूआ है तनवीरे सुख़न
नाम था रहमत इलाही और तख़ल्लुस बर्क़ था
ज़ौफ़ेगन थी जिनके दम से महफ़िले शेरो सुख़न
आज मैँ जो कुछ हूँ वह है उनका फ़ैज़ाने नज़र
उन से विरसे मेँ मिला मुझको शऊरे फिकरो फ़न
राजधानी देहली मेँ हूँ एक अर्से से मुक़ीम
कर रहा हूँ मैँ यहाँ पर ख़िदमते अहले वतन
रेडियो के फ़ारसी एकाँश से हूँ मुंसलिक
मेरा असरी आगही बर्क़ी है मौज़ूए सुख़न

डा. अहमद अली बर्क़ी आज़मी
ज़ाकिर नगर, नई दिल्ली

आज इंटर्नेट पे है हर चीज़ का दारो मदार

आज इंटर्नेट पे है हर चीज़ का दारो मदार
डा.अहमद अली बर्क़ी आज़मी

खोले हैँ इंफ़ार्मेशन टेक्नोलोजी ने ये द्वार
आज इंटर्नेट पे है हर चीज़ का दारो मदार
हो गए हैँ बुद्धिजीवी और लेखक हाईटेक
व्यक्त करते हैँ ब्लागस्पाट पर अपने विचार
लिख रहा है लेख अपने ब्लागवाणी पर कोई
है किसी को सिर्फ बस चिट्ठाजगत पर एतबार
लेखकोँ मे बढ रहा है अब ब्लागिंग का चलन
पाठकोँ को रहता है हर वक्त इसका इंतेज़ार
आधुनिक युग मेँ यह है प्रचार का साधन नया
विश्व मेँ है अब ब्लागिंग एक उत्तम कारोबार
हो प्रदूषण की समस्या या ग्लोबल वार्मिंग
सामयिक विषयोँ पे मैँ भी व्यक्त करता हूँ विचार
है सशक्त अभिव्यक्ति का यह माध्यम अहमद अली
इस लिए मैँने किया है आज इसको अख़्तेयार

मीडिया

मीडियाa
डा.अहमद अली बर्क़ी आज़मी
ज़ाकिर नगर , नई देहली

मीडिया आज रखता है सब पर नज़र
काम है इसका निष्पक्ष देना ख़बर
ध्यान रखना ज़रूरी है इस बात का
इस के कवरेज का होता है गहरा असर
शक्तिशाली है आज इस क़दर मीडिया
मोड दे क़ौमी धारे को चाहे जिधर
है यह गणतंत्र का आज चौथा सुतूँ
रखता है सब को हालात से बाख़बर
आज है दाँव पर इस की निष्पक्षता
कर लेँ क़ब्ज़ा न इस पर कहीँ अहले ज़र
जिनका मक़्सद है सिर्फ अपना ही फ़यदा
चाहते हैँ बढाना वह अपना असर
कैसे अपनी बढाएँ वह टी आर पी
सिर्फ यह बात है उनके पेशे नज़र
कैसे आगे बढेँ गे बहुत जल्द वह
संसनीख़ेज़ ख़बरेँ न देँगे अगर
शायद उनको यह आभास हरगिज़ नहीँ
झूट की ज़िंदगी है बहुत मुख़्तसर
इस पे अंकुश ज़रूरी है अहमद अली
क्योँ कि है देश की स्मिता दाँव पर

Ghazal

Ghazal
Dr.Ahmad Ali Barqi Azmi

Sata lein hamko dilchaspi jo hai unko satane mein
Hamara kya woh ho jayeinge ruswa khud zamane mein
Ladayegi meri tadbir ab taqdeer se panja
Natija chahe jo kuchh ho muqaddar aazmane mein
Jise bhi dekhiye hai gardish e haalaat se naalaan
Sukoon e dil nahin hasil kisi ko bhi zamane mein
Who gulchin ho ki bijli sab ki aankhon mein khatakte hain
Yahi do char tinke jo hain mere aashiyane mein
Hai kuchh logon ki khaslat nau e insaan ki dilaazaari
Maza milta hai unko doosron ka dil dukhane mein
Ajab dastoor e duniya e mohabbat hai are tauba
Koi roone mein hai mashghool koie muskurane mein
Patingon ko jala Shma e mahfil sab koo aye BARQI
Dikhane ke liye masroof hai aansoo bahane mein

GHAZAL

GHAZAL
DR.AHMAD ALI BARQI AZMI
598/9, Zakir Nagar, Jamia Nagar
New Delhi-11025

Dard E Dil Apni Jagah Dard E Jigar Apni Jagah
Ashkbaari Kar Rahi Hai Chashm E Tar Apni Jagah
Sakit O samit Hain Donon Meri Haalat Dekh Kar
Aaina Apni Jagah Aainagar Apni Jagah
Baagh Mein Kaise Guzarein Pur Musarrat Zindagi
Baaghbaan Ka Khauf Aur Gulchin Ka Dar Apni Jagah
Meri Kashti Ki Rawaani Dekh kar Toofaan Mein
Pad Gayee Hai Sakht Chakkar Mein Bhanwar Apni jagah
Hai Ayaan Ashaar Se Mere Mera Soz E Duroon
Meri Aah E Aatashin Hai Be Asar Apni Jagah
Haal E Dil Kisko Sunayein Koi Sunta Hi Nahin
Apni Dhun Mein Hai Magan Woh Charahgar Apni Jagah
Ashkbaari Kaam Aayee Kuchh Na BARQI Hijr Mein
Sau Sifar Jode Nateeja Tha Sifar Apni Jagah

Poetic Compliments To Noor On His Thought

Noor Ke Ashaar Hain Barqi Hadees E Dilbari
Kaif O Sarmasti se Hai Sarshar Unki Shairi
Hai "JAWAANI"Wardat E Ishq Ki Manzar Kashi
Is Ke Har Har Sher Mein Hai Fikr O Fan ki Tazgi
Mahfil E "RAAH E ADAB" Mein Aaj Hain Wah Surkhru
Hai Ayaan Ghazlon Se Unki Soz O Saaz E Zindagi
Koi Mane Ya Na Mane Hai Mujhe Iska Yaqeen
Dar Haqeeqat "NOOR" Hain Bazm E Adab Ki Roshani
"Zindagi Har Haal Mein Qudrat Ka Ek Inaam Hai"
Jazbah E Mehr O Wafa BARQI Hai Husn E Zindagi

With best Compliments From Ahmad Ali Barqi Azmi To Noor.


Dr.Ahmad Ali Barqi Azmi
598/9, Zakir Nagar, jamia Nagar
New Delhi-110025

My INTRODUCTION

My INTRODUCTION
DR. AHMAD ALI BARQI AZMI
NEW DELHI-110025

Shahar E Azamgarh Hai Barqi Mera Aabaaee Watan
Jiski Azmat Ke Nishan Hain Har Taraf Jalwa Fegan
Mere Walid The Wahan Par Marja E Ahl E Nazar
Jinke Fikr O Fan Ka Majmuaa Hai “Tanveer E Sukhan”
Naam Tha Rahmat Ilahi Aur Takhallus Barq Tha
Zaufegan Thi Jinke Dam Se Mahfil E Sher O Sukhan
Aaj Main Jo Kuchh Hoon Wah Hai Unka Faizan E Nazar
Unse Virse Main Mila Mujhko Shaoor E Fikr O Fan
Raajdhani Dehli Main Hoon Ek Arse Se Muqeem
Kar Raha Hoon Main Yahaan Par Khidmat E Ahl E Watan
Radio Ki Farsi Service Se Main Hoon Munsalik
Mera Asri Aagahi Barqi Hai Mauzoo E Sukhan

As a mark of respect to Late Manohar Sharma "Saghar" Palampuri


Dwijender Dwij


میرا تعارف

میرا تعارف
شھر اعظم گڈہ ھے برقی میرا آبائی وطن
جس کی عظمت کے نشاں ھیں ھرطرف جلوہ فگن
میرے والد تھے وھاں پرمرجع اھل نظر
جن کے فکرو فن کامجموعہ ھے تنویر سخن
نام تھا رحمت الھی اور تخلص برق تھا
ضوفگن تھی جن کے دم سے محفل شعروسخن
آج میں جو کچھ ھوں وہ ھے ان کا فیضان نظر
ان کے ورثے میں ملا مجھکو شعور فکروفن
راجدھانی دھلی میں ھوں ایک عرصے سے مقیم
کر رھا ھوں میں یھاں پر خدمت اھل وطن
ریڈ یو کے فارسی شعبے سے ھوں میں منسلک
میرا عصری آگھی برقی ھے موضوع سخن
ڈاکٹر احمد علی برقی اعظمی
ذاکر نگر، نئی دھلی

मेरा तआरुफ

मेरा तआरुफ
शहरे आज़मगढ है बर्क़ी मेरा आबाई वतन
जिसकी अज़मत के निशाँ हैँ हर तरफ जलवा फेगन
मेरे वालिद थे वहाँ पर मर्जए अहले नज़र
जिनके फिकरो फ़न का मजमूआ है तनवीरे सुख़न
नाम था रहमत इलाही और तख़ल्लुस बर्क़ था
ज़ौफ़ेगन थी जिनके दम से महफ़िले शेरो सुख़न
आज मैँ जो कुछ हूँ वह है उनका फ़ैज़ाने नज़र
उन विरसे मेँ मिला मुझको शऊरे फिकरो फ़न
राजधानी देहली मेँ हूँ एक अर्से से मुक़ीम
कर रहा हूँ मैँ यहाँ पर ख़िदमते अहले वतन
रेडियो के फ़ारसी एकाँश से हूँ मुंसलिक
मेरा असरी आगही बर्क़ी है मौज़ूए सुख़न

डा. अहमद अली बर्क़ी आज़मी
ज़ाकिर नगर, नई दिल्ली

2- ग़ज़ल

2- ग़ज़ल
डा. अहमद अली बर्की़ आज़मी

सता लेँ हमको दिलचसपी जो है उनको सताने मेँ
हमारा क्या वह हो जाएँगे रुस्वा ख़ुद ज़माने मेँ
लडाएगी मेरी तदबीर अब तक़दीर से पंजा
नतीजा चाहे जो कुछ हो मुक़ददर आज़माने मेँ
जिसे भी देखिए है गर्दिशे हालात से नालाँ
सुकूने दिल नहीँ हासिल किसी को इस ज़माने मेँ
वह गुलचीँ हो कि बिजुली सबकी आखोँ मेँ खटकते हैँ
यही दो चार तिनके जो हैँ मेरे आशयाने मेँ
है कुछ लोगोँ की ख़सलत नौए इंसाँ की दिलआज़ारी
मज़ा मिलता है उनको दूसरोँ का दिल दुखाने मेँ
अजब दसतूरे दुनियाए मोहब्बत है अरे तौबा
कोई रोने मेँ है मश़ग़ूल कोई मुसकुराने मेँ
पतिंगोँ को जला कर शमए महफिल सबको ऐ बर्क़ी
दिखाने के लिए मसरूफ है आँसू बहाने मेँ

ग़ज़ल

1- ग़ज़ल
डा. अहमद अली बर्क़ी आज़मी

नहीँ है उसको मेरे रंजो ग़म का अंदाज़ा
बिखर न जाए मेरी ज़िंदगी का शीराज़ा
अमीरे शहर बनाया था जिस सितमगर को
उसी ने बंद किया मेरे घर का दरवाज़ा
सितम शआरी में उसका नहीँ कोई हमसर
सितम शआरोँ मेँ वह है बुलंद आवाज़ा
गुज़र रही है जो मुझपर किसी को क्या मालूम
जो ज़ख्म उसने दिए थे हैँ आज तक ताज़ा
गुरेज़ करते हैँ सब उसकी मेज़बानी से
भुगत रहा है वह अपने किए का ख़मयाज़ा
है तंग क़फिया इस बहर मेँ ग़ज़ल के लिए
दिखाता वरना मैँ ज़ोरे क़लम का अंदाज़ा
वह सुर्ख़रू नज़र आता है इस लिए बर्क़ी
है उसके चेहरे का ख़ूने जिगर मेरा ग़ाज़ा

अमीरे शहर-हाकिम, सितम शआरी-ज़ुल्म
सितम शआर- ज़लिम, ग़ाज़ा-क्रीम,बुलंद आवाज़ा- मशहूर

غزل2

غزل

जिस तरफ देखो प्रदूषण का उधर फैला है जाल

जिस तरफ देखो प्रदूषण का उधर फैला है जाल
डा. अहमद अली बर्क़ी आज़मी
वास्तव मेँ है ग्लोबल वीर्मिंग का यह कमाल
अहले अमरीका जिसने कर दिया जीना मुहाल
है कहीँ कटरीना और रीटा कहीँ ज़ेरे सवाल
है यह फितरत का इशारा हर कमाले रा ज़वाल
अब भी कुछ बिगडा नही है होँ अगर सब हमख़्याल
मिल के कर सकते हैँ मोन्टर्याल कन्वेंशन बहाल
सब परीशाँहाल हैँ हो जल्द इसका ख़ातमा
जिस तरफ देखो प्रदूषण का उधर फैला है जाल
हो रहे हैँ लोग अमराज़े तनफ़्फुस के शिकार
पुर मुसर्रत ज़िंदगी है आजकल ख़्वाबो श़याल
मसलहत अंदेश हैँ अहले सियासत आज कल
कोई करता ही नहीँ नौए बशर की देख भाल
कह रहा है यह ज़बाने हाल से भोपाल आज
हम पे जो गुज़री है हम ही जानते हैँ उसका हाल
आज कल हालात से लेता नहीँ कोई सबक़
जिस से ख़तरे मेँ है हर दम हर किसी की जानोमाल
वक़्त का है यह तक़ाजा़ हो कयोटो पर अमल
होँ सभी इसके लिए बर्की हमेशा हम ख़्याल

फितरत- प्रकृति, हर कमाले रा ज़वाल-हर उत्थान का पतन, अमराज़े तनफ़्फुस- दमा, नौए बशर- इंसान