मेरा तआरुफ

मेरा तआरुफ
शहरे आज़मगढ है बर्क़ी मेरा आबाई वतन
जिसकी अज़मत के निशाँ हैँ हर तरफ जलवा फेगन
मेरे वालिद थे वहाँ पर मर्जए अहले नज़र
जिनके फिकरो फ़न का मजमूआ है तनवीरे सुख़न
नाम था रहमत इलाही और तख़ल्लुस बर्क़ था
ज़ौफ़ेगन थी जिनके दम से महफ़िले शेरो सुख़न
आज मैँ जो कुछ हूँ वह है उनका फ़ैज़ाने नज़र
उन से विरसे मेँ मिला मुझको शऊरे फिकरो फ़न
राजधानी देहली मेँ हूँ एक अर्से से मुक़ीम
कर रहा हूँ मैँ यहाँ पर ख़िदमते अहले वतन
रेडियो के फ़ारसी एकाँश से हूँ मुंसलिक
मेरा असरी आगही बर्क़ी है मौज़ूए सुख़न

डा. अहमद अली बर्क़ी आज़मी
ज़ाकिर नगर, नई दिल्ली

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