तरही ग़जल :कौन चला बनवास रे जोगी
तरही ग़जलकौन चला बनवास रे जोगी
डा.अहमद अली बर्क़ी आज़मी
प्रीत न आई रास रे जोगी
ले लूँ क्या बनवास रे जोगी
दर-दर यूँ ही भटक रहा हूँ
आता नहीँ क्यों पास रे जोगी
रहूँ मैं कब तक भूखा प्यासा
आ के बुझा जा प्यास रे जोगी
देगा कब तू आख़िर दर्शन
मन है बहुत उदास रे जोगी
कितना बेहिस है तू आख़िर
तुझे नहीं एहसास रेजोगी
मन को चंचल कर देती है
अब भी मिलन की प्यास रे जोगी
छोड़ के तेरा जाऊँ कहाँ दर
मैं तो हूँ तेरा दास रे जोगी
देख ले मुड़कर ज़रा इधर भी
कौन चला बनवास रे जोगी
सब्र की हो गई हद ‘बर्क़ी’ की
तेरा हो सत्यानास रे जोगी