हर कोई आलूदगी का है शिकार
हर कोई आलूदगी का है शिकार
डा. अहमद अली बर्क़ी आज़मी
आज कल माहौल है नासाज़गार
हर तरफ है एक ज़ेहनी इंतेशार
है बडे शहरोँ मेँ जीना एक अज़ाब
हर कोई आलूदगी का है शिकार
आ रहे हैँ लोग शहरोँ की तरफ
गाँव का ना गुफ़तह बेह है हाले ज़ार
नित नए अमराज़ से है साबक़ा
पुर ख़तर है गर्दिशे लैलो नहार
आ रहा है जिस तरफ भी देखिए
एक तूफ़ाने हवादिस बार बार
बढ़ती जाती है गलोबल वार्मिंग
लोग हैँ जिस के असर से बेक़रार
है दिगर्गूँ आज मौसम का मिज़ाज
गर्दिशे हालात के हैँ सब शिकार
जिसको देखो बरसरे पैकार है
दामने इंसानियत है तार तार
है गलोबल वार्मिंग अहमद अली
एक मुसलसल कर्ब की आईना दार
डा. अहमद अली बर्क़ी आज़मी
आज कल माहौल है नासाज़गार
हर तरफ है एक ज़ेहनी इंतेशार
है बडे शहरोँ मेँ जीना एक अज़ाब
हर कोई आलूदगी का है शिकार
आ रहे हैँ लोग शहरोँ की तरफ
गाँव का ना गुफ़तह बेह है हाले ज़ार
नित नए अमराज़ से है साबक़ा
पुर ख़तर है गर्दिशे लैलो नहार
आ रहा है जिस तरफ भी देखिए
एक तूफ़ाने हवादिस बार बार
बढ़ती जाती है गलोबल वार्मिंग
लोग हैँ जिस के असर से बेक़रार
है दिगर्गूँ आज मौसम का मिज़ाज
गर्दिशे हालात के हैँ सब शिकार
जिसको देखो बरसरे पैकार है
दामने इंसानियत है तार तार
है गलोबल वार्मिंग अहमद अली
एक मुसलसल कर्ब की आईना दार